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नाग पंचमी 2025 में कब मनाई जाएगी? जानें नागपंचमी का महत्व और पूजा का विधि।

नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह (जुलाई-अगस्त) के शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हरियाली तीज के बाद आता है और रक्षा बंधन से कुछ दिन पहले होता है। इस दिन नाग देवता (सर्प) की पूजा की जाती है और यह त्योहार नागों के प्रति सम्मान और रक्षा की भावना को दर्शाता है।
जनमेजय ने यह यज्ञ अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया था, जिनकी हत्या सर्पों के राजा तक्षक ने की थी।जिस दिन यज्ञ रोका गया वह श्रावण मास की शुक्ल पक्ष पंचमी का दिन था। इसी यज्ञ के दौरान, ऋषि वैशम्पायन ने पहली बार संपूर्ण महाभारत का वर्णन किया था। उस दिन को तब से नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

नाग पंचमी का महत्व:

ऐसा माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता को दूध चढ़ाने और पूजा करने से भय, दोष और सर्पदोष से मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी पर नाग देवता (Nag Devta) के साथ ही भगवान शिव की पूजा का भी विशेष महत्व होता है. वहीं, इस दिन नाग देवता के दर्शन होना अत्यंत शुभ माना जाता है । इस दिन हल चलाना वर्जित होता है क्योंकि धरती के नीचे नाग रहते हैं।

नाग पंचमी की पूजा विधि :

  1. घर के दरवाज़े या दीवारों पर गोबर से नाग का चित्र बनाकर उसकी पूजा की जाती है।
  2. नाग देवता को दूध, दूर्वा (घास), फूल, हल्दी-कुमकुम और मिठाई अर्पित की जाती है।
  3. इस दिन व्रत रखा जाता है
  4. महिलाएँ अपने भाई की लंबी उम्र और परिवार की रक्षा के लिए नाग देवता से प्रार्थना करती हैं।

क्यों मनाई जाती है नाग पंचमी?

भविष्य पुराण के मुताबिक, सुमंतु मुनि ने शतानीक राजा को नाग पंचमी की कथा के बारे में जानकारी दी थी। मान्यता है कि सावन शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन नाग लोक में बहुत बड़ा उत्सव होता है। पंचमी तिथि पर नागों को गाय के दूध से स्नान कराने का विधान है, कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के कुल को नागराज अभय दान देते हैं। महाभारत में जन्मेजय के नाग यज्ञ की कहानी है, जिसके मुताबिक जन्मेजय के नागयज्ञ के दौरान बड़े-बड़े विकराल नाग अग्निकुंड में जलने लगे, उस समय आस्तिक नामक ब्राह्मण सर्प यज्ञ रोककर नागों की रक्षा की थी यह पंचमी की तिथि थी। इसी के बाद यह नाग पंचमी मनाई जाने लगी।

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